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________________ जैनवालवोधकऔर उदासीका कारण पूछा तो वेशर्मने वेखरके माताको कह दिया कि मुझे यदि कुवेरदत्तकी स्त्री प्रियंगुसुंदरी नहिं मिली-तौ में शीघ्र ही मरजाऊंगा। मंत्रीकी स्त्रीने यह बात कडारपिंगलके पिताको कह सुनाई। पिताने पुत्रकी मृत्युके भयसे उसको उपदेश देकर परस्त्रीसे विरक्त करनेकी जगह उसे थोडे दिन बाद उसकी प्राप्ति करादेनेकी आशा दिला भेजी। दो चार दिन बाद सुमति मंत्रीने राजाको बहकाया कि हजूर रत्नद्वीपमें एक किंजल्क नामका पक्षी होता है वह जिस शहरमें रहता है उस शहरके आस पास महामारी दुमिक्ष रोग अपमृत्यु आदि नहिं होते । तथा उस शहरपर शत्रुओंका चक्र नहिं चल पाता, चोर डाकू भी किसी प्रकार की हानि नहि पहुंचाते और महाराज उस पक्षोकी प्राप्ति भी सहनमें हो सकती है, क्योंकि अपने नगरका प्रसिद्ध सेठ कुवेरदत्त प्रायः जहाजके द्वारा उस द्वीपकी तरफ जाया पाया करता है सो उस सेठको भेजकर अवश्य एक जोड़ा पक्षी मंगाना चाहिये । राजाने मंत्रीकी बात सत्यार्थ मानकर तुरत ही कुवेर सेठको रत्न द्वीपमें भेजकर पक्षी लादेनेको स्वी. कार कराकर जहाजका प्रबंध कर दिया। ___ - कुवेश्दसने घरपर आकर यह परदेश गमनकी बात अपनी खीसे कही तो स्त्रीका माथा उनका और विचार करके वोली माणेश्वर ! ऐसा पक्षी होना असंभव है। इस वातमें मुझे कुछ
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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