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________________ तृतीय भाग। की नयी शोघसे अनेक इयुरोपीय विद्वानोंने सूर्यको चलता हुवा भी मान लिया है तोभी अभी तक सर्वसाधारणकाभ्रम अभी दूर नहिं हुवा है क्योंकि अभी यह विषय विवादग्रस्त है। परन्तु जवतक यह विषय भले प्रकार निीत न हो जाय तबतक हमें अपने प्राचीन प्राचार्योंके कथनानुसार पृथिवीको स्थिर थालोकी तरह गोलमानना ही ठीक है। क्योंकि प्राचीन आचार्यगण जिनवचनोंके अनुसार ही कथन करते हैं और जिनेन्द्र भगवान कभी अन्यया वादी नहीं होते। २४. कडार पिंगलकी मृत्यु। --:-- पूर्वकालमें एक कांपिल्य नामका नगर या उसके राजाका नाम नरसिंह था । नरसिंहराजा वडा बुद्धिमान धर्मात्मा न्यायनीतिके साथ राज्यका पालन करता था, उस राजाके मंत्री सुमत्तिके पुत्रका नाप था कडारपिंगल । यह कडारपिंगल बड़ा कामी दुराचारी था । इसी नगरमें एक सज्जन व्यापारी कुवेरदत्त नामका सेठ था उसकी स्त्री प्रियंगु सुंदरी वडी रूपवती सरल स्वभावकी पुण्यवती धर्मात्मा थी। . एकदिन कडारपिंगलने प्रियंगुसुंदरीको मंदिरजी जावे देखा और वह कामी उसपर मोहित हो गया। माताने दुःख
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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