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________________ जैनघालवोधककि वह जल घरमें वा घरके आसपास न जमने पावै । जिस घरमें सदैव सील रहा करती है वहांपर हवा कदापि निर्मल नहिं रह सकती । इसके सिवाय वहांपर असंख्य विषेले कीडा उत्पन्न होकर श्वासके द्वारा पेटमें जाते हैं और वे महामारी अदि अनेक रोगोंको उत्पन्न कर देते हैं। - जिस प्रकार हमको जलसे हमेशह काम पडनेके कारण हमारे घर सीले रहते हैं, उसप्रकार हमारे घरमें वा घरके चारों ओर मैला भी पडा रहता है क्योंकि गृहस्यके यहां साग तरकारी फल अन्न वगेरह जो जो पदार्थ प्राते हैं उनमेंसे कुछ न कुछ भाग अप्रयोजनीय समझकर फेंक दिया जाता है । वह यदि हमेशह घरमें या घरके इधर उधर पहा रहै तौ घरकी हवा कदापि शुद्ध नहि रह सकती । यद्यपि शहरों में तो कूडा करकट इकट्ठा करके घरके वाहर डालदेनेसे म्युनिस्पिल्टोके भंगी सरकारी गाडियोंमें उठाकर ले जाते हैं परंतु छोटे २ गावोंमें वह वहीं पड़ा रहता है इसलिये घरसे बाहर ही कूडा कर्कट फेंक देना उचित नहीं है किंतु गांवसे बाहर बहुत दूर फेकना चाहिये क्योंकि इम मैलेसे हवा जितनी बिगडती है उतनी किसीसे भी नहिं विगडती । इसकारण घर सदैव साफ सुथरा रहै ऐसे उपाय हमेशह करते रहना चाहिये । वस इन दोनों उपायोंके करनेसे वायु बहुधा शुद्ध रहेगी और शुद्ध वायुके सेवनसे शरीरमें किसी प्रकारका रोग नहिं होने पावेगा।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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