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________________ दूषित वाहप (वाम हवाको स्वासोर मिल जाती है, तृतीय भाग। जगतमें जितने पदार्थ हैं वे सूर्यकी गर्मीसे सदैव जलते रहते हैं और उन सब पदार्थोंसे उष्ण हुई दूषित वाष्प (वाफभाप) हवाके साथ मिल जाती है, सो जब हम ऐसी मैली हवाको स्वासोच्छवास के द्वारा ग्रहण करते हैं तब हमारे शरीरमें अनेक प्रकारके रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस कारण पर बनवाना हो तो उत्तम स्थान देखकर वनवाना चाहिये तथा जिस घरमें हवा भले प्रकार चलती फिरती रहै ऐसे मकानमें ही रहना चाहिये। जहांकी हवा अच्छी नहीं वहां पर रहना वा घर बनवाना अपने आप मृत्युको बुलाना है। जिस घरमें पूर्णतया प्रकाश ( उजाला) हो वहांपर इवाका संचार (आना जाना) अच्छी तरहसे होता है। इसकारण जिस घरमें प्रकाश हो, अधेरा नही हो ऐसे घरमें रहना वा ऐसा प्रबंध करना चाहिये। . रहनेके स्थानका वायु निर्मल ( साफ) रखने के लिये दो बातें अवश्य करनी चाहिये । एक तो मैला साफ करनेका उपाय और दूसरा नालिय वनाना। क्योंकि हमको (गृहस्थियोंको) निरंतर ही जलका काम पडला है । जलके बिना मनुष्यों का जीवन निर्वाह कदापि नहिं हो सकता . किंतु बहुत सावधानतासे रहने पर भी थोडा बहुत जल इधर उघर' अवश्य ही विखर (फैल : जाता है। वह जल जहां तहां पडनेसे वहीं पर जम जाता है और उससे मकान भी हमेशह सीलारहता है । इसकारण नालिय बनवाना उचित है जिससे
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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