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________________ HIV नयालदोघक सोता। कीजे शक्ति प्रमान, शक्ति विना सरचा धरै । 'यानत' सरयावान, अजर अपर पद भोगवै ॥ ८॥ 2999CCCE विंशति विद्यमान तीर्थकरोंका अर्घ । SOONEEEE उदकचंदनतंदुलपुरकैदरुसुदीपसुधृपफलाकैः । घवलमंगलगानरवाकले जिनगृहे जिनराजमहं यजे॥ ही सीमवरयुगमंघरवाहुलबाहुसंजातस्वयंप्रमवृषभाननअनन्तवीर्यसूरप्रमविशालकीर्तिजघरचन्द्राननचन्द्रबाहुभुजगमईश्वरनेमिप्रभवीरसेनमहामदेवयशमजितवीर्येति विशतिविद्यमानतीर्थनरेभ्योऽयं निर्वपानीति स्वाहा ॥ १ ॥ __ अकृत्रिम चैत्यालयोंका अर्थ | कृत्याकृत्रिपचारुचैत्यनिलयान्नित्यं त्रिलोकींगतान । वंदे भावनव्यंतरद्युतिघरस्वगामरावासगान् ।। सद्गंधाक्षतपुष्पदापचरुकैः सहोपधूपैः फलैर् । द्रन्यैीरमुखैर्यजामि सततं दुष्कर्मणां शांतये ॥२॥ __ओं ही कृत्रिमाकृत्रिमत्याल्यसंबंधिजिनविवेभ्योज्य निर्वः पामीति स्वाहा ॥२॥ १ इस इलोकत्रा जोपाठ बाराची प्राचीन प्रति मिल है वही हमने उगाया है हमारी रमझमें यही पाठ शुद्ध प्रतीत हुवा है !
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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