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________________ जैनबालवोधक:नहीं तेरे पास आनेकी, परंतु कुमारने समझा कि-मोहरोंसे भरा कलशा देख लिया । सो अब यह छिप नहीं सकता । सो वह कलसा वोरेमें भरकर उठा लाया और शेठजीके घर पर जाकर शेठजीके पावोंमें कलशा रखकर प्रार्थना करने लगा कि-यह कलशा आपकी सेवामें है। खंदक खोदते समय मिला है आपने देख लिया था वैसा ही यह हाजिर है आपहीका है इस दासको जो इच्छा हो सो इसमेंसे देदें। सव हाल समझकर १०० मोहरें उसको देकर बाकी सब रखली । कुमार भी खुश होकर चला गया। शेठने मनमें विचारा कि यह सब कुमारके मुंह देखने की प्रतिज्ञाका ही फल है। यदि इसी प्रकार भगवानके नित्य दर्शन पूजन करनेकी प्रतिज्ञा लेता तो न मालूम आज तक कितना लाभ वा पुण्य होता ऐसा समझकर उसी दिनसे नित्य दर्शनकी प्रतिज्ञा कर ली उसी दिनसे शेठके यहां धन और सुख शांतिकी दिन दूनी रात चौगुणी वृद्धि होने लगी। ___ इस कहानीका मतलब यही है कि विना दृढ प्रतिज्ञा किये कोई भी कार्य फलदायक नहिं होता इसलिये प्रतिक्षाबद्ध होकर सब कार्य करना चाहिये ।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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