SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५ तृतीय भाग। दर्शन पूजन करनेकी भी प्रतिज्ञा लेलोगे। शेठजीने कुमारके. दर्शनकी प्रतिज्ञा लेली । और ब्रह्मचारीजी उनके यहां जीम कर चले गये। तीन चार महीने तक तो दुकान खोलते ही सेठजी उस कुमारको नित्य देख लिया करते थे कोई विघ्न नहिं पडा परंतु देव योगसे एक दिन कुमार सेठजीकी दुकान खुलनेसे पहिले ही गांव वाहर मिट्टी लेनेको चला गया। उसने जिप्त खंदकसे मिट्टी खोदना प्रारम्भ किया दैवयोगसे पुराने जपानेका किसी धनान्यका गढा हुवा मोहरोंसे भरा हुवा. एककलस निकला उसको ढक्कन उघाड कर देखा तो विचारमें पड़ गया। इधर सेठजीको आज जल्दी ही भोजन करके जाना. था परंतु दुकान पर जाकर देखा तो कुमारके दर्शन नहिं हुये । कुमारीसे पूछने पर मालम हुवा वह मिट्टी लाने को गया है, शेठजी अपने नित्य नियमका लिहाज रखनेके लिये खंदकके पास उसी समय पहुंचे कि जिस समय कुमार मोहरें. पाकर इधर उधर देखता या कि- कोई देखता तो नहीं है। उसकी दृष्टिम शेठ ही पडे.तो वह डरा और विचार किया कि सेठको सामिल करनेसे ही यह वन. पचैगा ऐसा विचार . शेठको हाथके इशारेसे अपने पास बुलाने लगा। परन्तु शेठ को जल्दी जानेका काम या सो वह बोला कि 'देख लिया देख लिया' अर्यात तेरा मुह मैंने देख लिया अब जरूरत
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy