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________________ तृतीय भाग ।। तीर्थंकर भगवान जन्म लेंगे। यह बात जानकर माता पिता दोनो ही हर्षायमान होते हैं . और भगवानके जन्म समय: पर्यंत बडे आनंदसे समय व्यतीत करते हैं। . . श्रावकोंके नित्य करनेके षट् कर्म । देवपूजा गुरूपास्तिः, स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां, षट् कर्माणि दिने दिने ॥ अर्थ-प्रतिदिन जिनेन्द्र देवकी पूजा करना, गुरुकी उपासना करना, स्वाध्याय करना, यथाशक्ति कुछ न कुछ संयम पालना, कुछ न कुछ तप धारण करना और चार प्रकारके दानोंमेंसे कोई न कोई दान करना ये गृहस्थियों के 'ष्ट कर्म हैं ।। १ ॥ देवपूजा-प्रतिदिन मंदिरजीमें जाकर अष्टद्रव्यसे पूजा, करना । यदि विद्यार्थियोंको पढने के कारण विशेष समय नहि मिले तो, अक्षत, लौंग वगेरह कोई भी एक द्रव्य लेकर ही नित्य नियम पूजा बोलकर आठों द्रव्योंकी जगह वह एक द्रव्य ही चढाकर पूजा कर लेना अथवा एक दो चार पांच अर्घही चढा देना. अथवा कमसे कप पाठों द्रव्योंमें से कोई एक द्रव्य लेकर उस द्रव्यको चढानेका पद्य व मंत्र बोलकर. एकही द्रव्य चढा देना, तथा भगवानकी कोई भी स्तुति बोल देना सो देवपूना है।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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