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________________ तृतीय भाग । २१७ अंजन मंजन न्हाना धोना, गंध पुष्प सजधज करना । आरंभ पांच पार हिंसादिक, इस दिन बिलकुल परिहरना ॥ उमेश अष्टमी चतुर्दशी के दिन चार प्रकारके आहार को छोड देने को उपवास कहते हैं परन्तु पहिले रोज और पारनाके दिन एकासन करके १६ पहरका उपवास करना सो प्रोषधोपवास है । प्रोषधोपवासके दिन पांचों पापोंका,-- और शृंगार, आरंभ, गंध पुग्ध, स्नान अंजन मंजनका सर्वथा त्याग करके १६ पहर तक ज्ञानध्यान स्वाध्यायमें तत्पर " रहना चाहिए ॥ ८२ ॥ प्रोषधादिका मेद | तजना चारों आहारोंका, होय निराकुल है उपवास | एकवार खानेको मोषय, कहते हैं जो प्रभुपददास || दो मोषधके विचमें करना, एक आशना कहलाता | प्रोपधोपवास है पूरा, भव्य जनोंको सुखदाता ॥ ३ ॥ खाद्य साथ लेद्य पेय इन चारों आहारोंका त्याग करना-सा तो उपवास है और एक ही वक्त खाना सो प्रोषध( एकाशना ) है, और दो प्रोषधोंके वीचमें ( अष्टमी चतुदशीको ) एक उपवास करना सो प्रोषधोपवास है ॥ ८३॥ प्रोषधोपवासके पांच अतीचार | देखे माले बिन चीजोंका, लेना मलादि तज देना । और विछाना विस्तरका त्यों, व्रत कर्तव्य झुला देनाः ॥..
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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