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________________ "जैनवालबोधक इस व्रत पालने का फल और अतिचार । . स्थूल सूक्ष्म पाँचों पापोंका, हो जानेसे पूरा त्याग | सीमाके बाहर सघ जाते, इस व्रतसे सुमहाव्रत आए || अतिचार पांच इस व्रतके, मंगवाना प्रेषण करना । रूप दिखाय इशारा करना, चीज फेंकना ध्वनि करना | इस देशावकाशिक व्रतकी मर्यादाओं से बाहर पांचों पापोंका स्थूल सूक्ष्म दोनों प्रकार त्याग हो जानेसे श्रावक के 'अणुव्रत महाव्रत हो जाते हैं ॥ २०४ मर्यादा बाहर चिट्ठी वस्तु या आदमीको भेजना, मगाना, - या शब्द करना, अपना रूप दिखाकर समस्या ( इशारा ) करना, या कंकर पत्थर फेकना ये पांच देशावकाशिक शिक्षा व्रतके अतीचार हैं ॥ ७६ ॥ सामायिक शिक्षाव्रत | पूर्ण रीति से पंच पापका, परित्याग करना सज्ञान | मर्यादा के भीतर वाहर, अमुक समय घर समता ध्यान ॥ है यह सामायिक शिक्षाव्रत, अणुव्रतों का उपकारक । विधिसे अनलप्स सावधान हो, बनो सदा इसके धारक | मन वचन काय कृत कारित अनुमोदना करके मर्यादा और मर्यादासे बाहर भी किसी नियत समय पर्यंत पांव - पापोंके सर्वथा त्याग करके समता भावसे वैठकर ध्यान - करनेको सामयिक कहते हैं ॥ ७६ ॥
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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