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________________ तृतीय भाग । नसीब में लिखा है- सों ही मिलेगा । जो धन लाभ लिलार लिख्यो, लघुदीरघ सुक्रतके अनुसारै । सो लहि है कछु फेर नहीं, परु देश के ढेरे सुमेरु सिंवारें ॥ घट न वाढ कहीं वह होय, कहा कर आवत सोच विचारै । कूप किधौं भर सागर मैं नर, गागर पान मिले जल सौरे ॥ माशारूपी नदी । मनहर कवित्त । मोहसे महान ऊंचे परवतसौं दरि भाई, विहूं जग भूतल में ये ही विसतरी है। विविध मनोरमें भूरि जल भरी है, तिसना तरंगनिसौं श्राकुलता घरी है ॥ परै भ्रम भौर जहां रागसे मगर तहां, चिता तट तुंग धर्म वृच्छ ढॉय दरी है । ऐसी यह धाशा नाम नदी है प्रगाध ताकों, धन्य साधु वीरतरं चढि तरी है ॥ ५ ॥ महामूढ वर्णन | जीवन कितेक तामेँ कहा वीति बाकी रह्यो, तापै कौन कौन करे हेर फेरही । S ९ मारवाड़ चोरोंमें अर्थात् टीलों में । १० सोनेके सुमेर पर । ११ कम और - ज्यादा । १२ कूएमें से मर ले चाहे समुद्रमेंसे भर ले तेरे घढे भर ही जल मिलेगा । १३ सर्वत्र । १४ मनोरथमय । १५ गिराकरके । १६ धीरज जहाज ।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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