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________________ तृतीय भाग। मुझसे हो सकता है ? जव राजाने उसके ऐसे वचन सुने हो बहुत गुस्सा हुये और सन्यघोषके लिये तीन दंड नियत किये वे यह थे कि तीन मोवरकी याली भरी हुई खायो, या मल्लोंके तीन मुक्के (धूंसे ) सहो या अपना सारा धन दे दो । सत्यघोषने गोबर खाना पसंद किया परंतु उससे वह थोड़ा, भी नहीं खाया गया तो फिर उसने उसे छोडकर पल्लोंके तीन घूसे खाने पसंद किये परन्तु उनमें भी असक्त होकर अपना सारा धन दे दिया । सत्यघोष तीनों दंडाको क्रमसे सहकर मरणको प्राप्त हो गया और प्रतिलोमसे मर कर राजाके खजानेमें अगधनामका सर्प हुआ, वहांसे मरकर बहुत कालके लिये संसारी बनकर घूमने लगा।ठीक है, प्राणी मूठके प्रभावसे इस संसारमें सर्वत्र दुःख ही पाता है जैसा सत्यघोषने ऐहिक और पारलौकिक दुःखको प्राप्त किया। ५१. भूधरजैननीत्युपदेशसंग्रह छठा भाग। होनहार दुर्निवार। कवित्त मनहर। - कैसे कैसे बली भूप भूपर विख्यात भये, . . अरिकुल कांपे नेक भौंहके विकारसौं। ।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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