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________________ ૨ arestus पास गया और अपने बडे भारी कीमती पांच हारोंको उसके पास रखकर परदेश चला गया और वहां बहुमा धन कमा कर लौट प्राथ। रास्तेमें समुद्र पडता था इसलिये वह अपने मालको जहाजमें लदवा कर चल दिया । भाग्यसे जहाज समुद्र में डूब गया और एक लकडीके सहारे जैसे तैसे समुद्रदच पार लग गया अव उसके पास खाने तकको भी न बचा था इसलिए वह सीधा वहांसे सिहपुरकी तरक चल दियां और सत्यघोषके पास थाया परंतु सत्यघोष पहिलेसे ही जब वह भारहा था दूरसे देखकर समझ गया कि यह अपने हार उठाने आया है ऐसा जानकर पास बैठे हुए मनुष्योंको विश्वास दिलाने के लिए कि मेरे पास इसका कुछ भी नहीं है कहना शुरू कर दिया कि देखो ! यक्ष भिखारी आ रहा है और पागलसा मालूम पडता है यहां आकर मुझ से कुछ अवश्य मांगेगा कारण कि इसका जहाज समुद्रमें व गया है इसलिये वह विहलसा हो गया है, इतनेमें समुद्रदसने सत्यघोषके पास आकर नमस्कार किया चौर बोला- है सत्यवक्ता ! मैं परदेशं धन कमाने गया था और वहांसे बहुत धन कमाकर लौट आया था परंतु भाग्य से मेरा धनका जहाज समुद्रमें डूब गया है अतः कृपया मेरे पांचों हार दे दीजिए | उसके वचन सुनकर सत्यघोष हँस पडा और पास के बैठे हुए मनुष्योंसे बोला- देखो ! मैंने तुमसे पहिले कह दिया था वह सत्य ही निकला न ! उन सर्वोने
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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