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________________ तृतीय भाग। जूएके बहन भाई हैं । ये खेल कभी दिल बहलानेको भी नहि खेलना चाहिये। ५०. सत्यघोषकी कथा। -- - . जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें सिंहपुर नगर है वहां राजा सिंह. सेन थे और रानी रामदत्ता, पुरोहितका नाम श्रीभूति था वह अपने यज्ञोपवीतमें छुरी बांधकर सारे शहरमें फिरा करता था और मनुष्यों को विश्वास दिलाता था कि यदि मैं कभी भी असत्य बोलूंगा तो इस छुरीसे अपनी जिहा काट डालूंगा इस तरह छलसे उसने अपना नाम सत्यघोष रखवा लिया था और पुरवासी. उसे सत्यघोष कहकर ही पुकारा करते थे। मनुष्योंका उस पर वटा विश्वास हो गयां था इसलिये जो बाहर यात्रा आदिकेलिए जाता था अपना माल सत्यघोषके यहां ही रख जाता था इसलिये सत्यघोष की खूब बन गई थी वह चाहे जिसकी धरोहरका प्राधा या कुछ भी नहीं देता था और राजा उसकी कुछ भी न सुनते थे कारण कि राजाको भी यह विश्वास हो गया था कि सत्यघोष विलकुल सच्चा है । एक दफे पद्मखंडपुरसे एक चणिकपुत्र जिसका नाम समुद्रदत्त था सिंहपुर पाया और वह लोगोंके, मुंहसे सत्यघोषकी विश्वासवार्ता सुनकर उसके
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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