SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय भाग १७ से निकाल दिया । उस धनदेवकी ऐसी सत्यता: देखकर साधुओंने भी प्रशंसा की और उस दिनसे धनदेवकी घर २ सत्कार होने लगा । ठीक है, मत्यके सामने झूठ कहांतक अपना राज्य कर सकता है इस लिये मवको चाहिये कि इमेशा सत्यका ही सहारा ले और झूठको निकाल देवें। ४९. जूवा निषेध। किसी तरहकी. शर्न लगाकर उसपर रुपये पैसे लेना देना उप्तको जूआ कहते हैं । जैसे आज कल बहुतसे जूवारी "शामतक मेह आजाय तो तुपकोदश रुपये देदिये जायगै यदि नहिं आया तो जो एक रुपया देते हो सो मेरा होगया।" इसको पानी वा नालीका जूया कहते हैं। तथा 'आज विलायतमें दशहजार ईकी गांठगेका चाण आया तो पांच रुपये तुम्हें देदिये जायगे न्यूनाधिक आया तो.तुमारा एक रुपया जो हमको दिया है सो हमारा होगया।' अथवा अफीमका अंतिमास नीलाम होता है उस नीलाममें यदि ४ का वा पांचका अंक आवैगा तो हम इतना रुपया देदेंगे नहि तौ जो १) रुपया देते हो सो हम खागये । इसी प्रकार अफोमके दडे पर लगाया जाता है। इन सबको अफीमका.सट्टा कहते हैं। इसके सिवाय दीवाली वगेरह पर वा-बारहों महीना
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy