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________________ तृतीय भाग। सांकल.सींगी अस्त्र-शस्त्रका, देना जिनसे होवे वार ॥ । हिंसादान नामका मित्रो, कहलाता है अनरय दंड । अपनन इसको तन देते हैं, ज्यों नहिं होवे युद्ध प्रचंड ।।६२॥ छुरी, कटारी, तलवार, बंदुक, फावडा, खुनीता, अग्नि, सांकल, सींगी, प्रादि हिला करनेवाले पदार्थ किसीको मांगे देना सो हिंसादान नामका अनर्थ दंड है ॥ २ ॥ प्रमादचर्या । पृथ्वी पानी अग्नि वायुका, विना काम आरम्भ करना। व्यर्थ छेदना वनस्पतीको, वे मतलब चलना फिरना ।। . औरोंको भी व्यर्थ घुमाना, है प्रमादचर्या दुखकर। कहा अनर्थ दंड है इसको शुभ चाहै तो इससे डर ॥६३ ॥ विना प्रयोजन पृथ्वी खोदना, पानी वखेरना, हवा चलाना, वनस्पतीको छेदना तथा विना मतलब ही चलना फिरना औरोंको भी फिराना इत्यादि प्रमादचर्या नामका. अनर्थ दंड है इसलिये इन क्रियाओंकों भी छोड देनाः चाहिए। . . - पापोपदेश या पापादेश। जिससे धोका देना आवे, मनुज करें त्यों हिंसारम। तियचोंको संकट देवे, वणिज कर फैलाकर दंभ ।।... ऐसी ऐसी बातें करना, पापादेश कहाता है। इस अनय दंडकको तजकर, उत्तम नर सुख पाता है:॥ जिन वातोंको वा कथाके मसंग उठानेसे, तियचोंको.
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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