SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय भाग । ૩૭ आप क्यों ऐसी मलिन वंदन मालूम पडती हो ! उसने कहा कि यदि श्रीकीर्ति श्रेष्ठी हारको चुराकर मुझे उससे अलकृत करोगे तो मैं जोऊंगी और तुम मेरे स्वामी होगे, अन्यथा नहीं । यह सुनकर वह वहांसे चल दिया और सीधा सेटके महलमें पहुंचकर हार चुराकर लौट पडा परंतु घरके रक्षक कोतवालोंने उस हारकी कांतिको देखकर समझ लिया कि यह कोई चोर चोरी करके जारहा है । कोतवालोंने उसका पीछा किया | यह भागने में असमर्थ होकर श्मशान भूमिकी तरफ गया और वहां वारिषेण जो कि कायोत्सर्ग लगाकर खड़े हुए थे उनके आगे वह हार डालकर वहीं कहीं लुक गया, जव कोतवाल चारिषेणके पास में थाए तो उसीको हारका चुरानेवाला समझकर श्रेणिक राजाको खवर करदी कि आपका लडका ही हारका चुरानेवाला है । श्रेणिकने यह सुनकर विना विचारे ही थाज्ञा देदी कि उस पापीका शिर काट डालो, हुक्म सुनाते देरी न हुई थी कि चांडालने तलवार लेकर जैसे ही उनके मस्तक पर चलाई कि उनके गले में एक सुन्दर पुष्पमाला बन गई । जब श्रेणिकने यह प्रतिशय सुना तो शीघ्र दोड़ आया और अपने कसूरको वारिपेण से क्षमा कराया और वार २ घर चलनेको कहा परन्तु उनने इस प्रकार संसारकी चंचलता देखकर मुनि होने का ही उत्तर दिया और सुरदेव मुनिके पास जाकर दीक्षा ले ली । अव वह इधर उधर धर्मोदेश होते हुए पलासक्कूट
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy