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________________ तृतीय भाग। 'चोरी निषेध छप्पय । चिंता तजै न चौर, चौंकायत सारै । पोटै धनी विलोक, लोक निर्दई मिल पारै ॥ प्रजापाल करि कोप, तोपसौं रोपि उडावे। मरै महादुख पेखि, अंत नीची गति पावै ॥ अति विपतिमूल चौरी विसन, प्रगट त्रास आवै नजर । परवित प्रदत्त अंगार गिन, नीतिनिघुन परसै न कर ॥ परस्त्री निषेध । कुति वहन गुनगहन, दहन दावानल ही है। सुनसचंद्र धनघटा, देहकृषकरन बँई है। धनसर-सोखनधूप, धरमदिन सांझ समानी। विपति भुजंगनिवास, वावई वेद वखानी ।। इहविधि अनेक औगुन भरी, मानहरन फांसी प्रवल । मत करहु मित्र यह जान जिय, परवनितासौं प्रीति पळ । परस्त्री त्याग प्रसंग। . दुर्मिल सवैया। दिठि दीपक लोय वनी वनिता, जदजीच पतंग जहां परते। १ चौकन्ने । २ परका धन । ३ विना दिया हुवा । ४ सुजस की चंद्रमाको ढकनेके लिए. बादलोंकी घटा: ५ क्षय रोग । ६ धर्मरूपी दिन: को अंत करनेवाली संध्या।.७ यांपके रहनेकी वाल्मीकी-चांवी । दिग्बप्रकाशमान । ९ दीपककी लोय ।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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