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________________ १०० जैनयालवोधकजाया करते थे सो सोमदत्त नामके मालीने एकदिन शेठसे पूछा कि आपप्रतिदिन प्रातःकाल ही कहां जाया करते हैं तव जिनदत शेठने कहा कि मुझे अमितपम और विद्युत्मभ नामके दो देवोंने खुश होकर आकाशमें चलनेकी विद्याप्रदान की है सो मैं उसीके प्रभावखे प्रकृत्रिम चैत्यालयोंके दर्शनपूजन करनेको जाया करता हूं और उन देवोंने कृया करके इस विद्याके सिद्ध करनेकी विधि भी बता दी है। तब सोमदचने कहा कि कृपा करके मुझे उसकी विधिवतार्दै तौ मैं भी आकाशगामिनी विद्या सिद्ध करके प्रतिदिन आपके साथ अकृत्रिम चैत्यालयों के दर्शन करके अपनी इच्छा पूर्ण करूं जिनदत्त शेठने कहा-कृष्णचतुदर्शीकी अंधेरी रातमें इपशान. भूमिमें वटवृक्षकी पूर्वतरफकी डालीपर एकसौ आठतनीका. दूवकी घासका छीका वांधकर और उसके नीचे जमीनपर चंदनादिसे चर्चित करके चपचमाते हुए छुरी. कटारी वगेरह तीक्ष्ण शस्त्रोंको सीधे मुखसे गाड़ देना फिर उस छींकेपर वैठकर नमस्कार मंत्र पढना और नमस्कार मंत्र पूरा होते ही एक रस्सी काट देना इसप्रकार एकसो पाठवार मंत्र जपकर एकसो आठ रस्सी काट देना तो भाकाशगामिनी विद्या सिद्ध हो जायगी। .. ..सोमदचने वैसा ही किया और नमस्कार मंत्रजापकरके प्रथम रस्सी काटनेको तैयार हुआ तो नीचे चमचमाते हुए... शस्त्र देखकर डरगया और मनमें शंका होगई कि सायद जिन-,
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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