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________________ द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष [६५ आत्मा नाम का कोई स्कन्ध नहीं है । पृथ्वी, धातु तथा रूप आदि को "रूप स्कन्ध" कहते है । सुख-दुःख तथा असुख और अदुःख के अनुभव को "वेदना स्कन्ध" कहते है। रूप विज्ञान, रस विज्ञान आदि विज्ञान को "विज्ञान स्कन्ध" कहते है। सजा के कारण वस्तु-विगेप के वोधक शब्द को "सना स्कन्ध" कहते है। दूसरे प्रकार के बौद्ध वे है, जो निम्न चार धातुओ को जगत को धारण करने वाला मानते है । पृथ्वी धातु है, जल धातु है, तेज धातु है और वायु धातु है । ये चारो पदार्थ जगत को धारण और पोपण करते है, इसलिए धातु कहलाते है। ये चारो धातु जव एकाकार होकर गरीर रूप में परिणत होते है तव इनकी जीव सज्ञा होती है। "चातुर्धातुकमिदं शरीर" अर्थात् यह शरीर चार धातुओ से बना है अत इन चार धातुओ से भिन्न आत्मा नही है । आजीविक सम्प्रदाय जैनागम तथा वौद्ध ग्रन्थो से यह वात स्पष्ट है कि महावीर के समय मे आजीविक मत अधिक प्रभावशाली था ।३ आजीविक सम्प्रदाय के नेता "मक्खलिगोगाल" तत्कालीन प्रसिद्ध छह आचार्यो मे से एक गिने जाते थे, अन्य पाँच आचार्यों के नाम निम्न प्रकार है : १ पूरणकस्सप, २. अजितकेसकम्बली, ३ पकुधकच्चायन, ४ सजय- . वेलठ्ठिपुत्त तथा ५ नातपुत्त (जातृपुत्र महावीर)।" ___ भगवती सूत्र में आजीविक सम्प्रदाय के प्रधान गोशाल का निम्न परिचय मिलता है । मक्खलिपुत्र गोगाल, सरवण नामक सन्निवेश मे एक ब्राह्मण की गोगाला मे पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम "मख" था, जो कि हाथ मे चित्र लेकर उसे दिखा-दिखाकर भिक्षा १ २ सूत्र कृताग, १ १ १७ महासत्तिपट्ठानसुत्त ( दीघनिकाय, २. ९ ) 'पांचो उपादान स्कन्ध दुख हैं।" सूत्र कृताग, १ १ १८. आजीविक सम्प्रदाय के "मक्खली" की महात्मा बुद्ध ने सबसे अधिक हा निप्रद साधुओ के मध्य गणना की है। (अगुत्तरनिकाय १ ३३ ) "आजीविक मत" के लिए, देखिये "श्रमण भगवान महावीर" का पचम अध्याय "आजीविक मत-दिग्दर्शन", प० २५९ भगवती टी०, १२ पृ० ८७ ४
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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