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________________ १८] जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास निष्क्रमणसत्कार-प्रव्रज्या ग्रहण करने वाले व्यक्ति का प्रवज्यामहोत्सव (निष्क्रमणसत्कार) बहुत ही समारोहपूर्वक मनाया जाता था। राजा, राजकीय जन तथा प्रजाजन इस कार्य में सम्मिलित होते थे। राजालोग प्रजा को दीक्षित होने के लिए उत्साहित किया करते थे। राजा कृष्ण वासुदेव ने घोषणा की थी कि कोई भी राजा, राज्य का उत्तराधिकारी, रानी, राजकुमार, राज्य, का प्रधान, योद्धा, कुटुम्ब का प्रधान, ग्राम का मुखिया धनी पुरुष, श्रीष्ठी, सेनाध्यक्ष, तथा व्यापारियो का प्रधान आदि यदि प्रवजित होना चाहता है तो वह स्वय उन लोगो के कुटुम्ब के पालन का उत्तरदायित्व ग्रहण करने को तैयार है। प्रव्रज्या कमलसरोवर अथवा किसी पवित्र देवमन्दिर के निकट दी जाती थी। इस कार्य के लिए कोई शुभ दिन चुन लिया था । चतुर्थी तथा अष्टमी इस कार्य के लिए अनुपयुक्त माने जाते थे। प्रव्रज्या-धारण के पूर्व अपने माता-पिता और सरक्षक से प्रव्रज्या ग्रहण करने की आज्ञा प्राप्त कर लेना आवश्यक था। प्रायः संरक्षक लोग दीक्षा ग्रहण करने के इच्छुक पुरुप अथवा स्त्री को आचार्य के समक्ष भिक्षारूप मे भी भेट कर दिया करते थे। नायाधम्मकहाओ मे राजकुमार मेघ के प्रबजित होने का वर्णन है। भगवान् महावीर का उपदेश सुन कर मेघकुमार अपने घर वापिस आए और माता-पिता से दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी । जब मेघकुमार की मा ने पुत्र के प्रव्रज्याग्रहण के विषय मे सुना तो वह दुख से व्याकुल हो कर मूछित हो गई। इसके बाद माता-पिता ने उसे प्रव्रज्या ग्रहण करने से रोकने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु राजकुमार अपने विचार से थोडा भी विचलित नहीं हुआ। इसके बाद बाजार (कुत्तियावण) से वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि धर्मोपकरण मंगाये गये । एक नाई (कासावय) बालो को काटने के लिए बुलाया गया। इसके बाद मेघकुमार को स्नान कराया गया । उसका शरीर चन्दन से लिप्त किया १ नायाधम्मकहाओ ५, पृ० ७१ । २ वृहत् कल्पभाष्य ४१३ । नायाधम्मकहाओ १, ३१ तथा अन्तगडदसाओ ५ २८ । ४ वही १, २६-३२, पृ० २४-३४ ।
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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