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________________ पंचम अध्याय : उपासक-जीवन [ १७३ महावीर ने कहा था कि-आनन्द श्रमणोपासक वहुत वर्षों तक उपासक के कर्तव्यो का पालन कर सौधर्मकल्प (स्वर्ग) के अरुणविमान मे चार पल्य की आयु वाला देवता होगा। नंदनीपिता तथा सालिहीपिता ने अपने पूर्ण जीवन मे उपासक के व्रतो का पालन किया । मरणकाल मे सल्लेखना धारण कर वे मृत्यु को प्राप्त हुए। उसके बाद दोनो ने क्रमश. देवत्व प्राप्त कर आनतस्वर्ग के अरुणगव विमान तथा सौधर्मस्वर्ग के अरुणकील विमान मे जन्म ग्रहण किया। इन दोनो के सम्वन्ध मे यह भी कहा गया है कि ये दोनो क्रम से महाविदेह मे जन्म ले कर फिर सिद्धि को प्राप्त करेंगे। इससे यह बात स्पष्ट है कि उपासक देवलोक प्राप्त करने के बाद क्रमश निर्वाण को भी प्राप्त करता है। जो व्यक्ति अपना जीवन उपासक के रूप मे न व्यतीत कर सांसारिक भोग-विलासो मे व्यतीत करते है तथा हिसादि पापकर्मो मे लिप्त रहते है; वे इस भव मे नारकीय यातनाओ को प्राप्त करते है तथा परभव मे अनेक जन्मो तक नरकगामी होते है। जैनसूत्रो मे ऐसे अनेक मनुष्यो का वर्णन है, जिन्होने अपने जीवन मे हिंसादि पापो का आचरण किया और उसके परिणामस्वरूप उन्हे इहलोक तथा परलोक दोनो जगह अपराध का फल भोगना पडा ।२।। गोत्तासअ (गोत्रासक) नामक एक बहुत अधामिक मनुष्य था । वह प्रतिदिन गोशाला मे जा कर पशुओ का वध करता तथा मॉस एव मद्य का सेवन किया करता था । जीवनभर अधार्मिक कृत्यो के द्वारा उसने पाप का संग्रह किया और अशान्तिपर्वक मर कर द्वितीय नरक मे तीन सागरोपम की आयु वाला नारकी हुआ । नरक से निकलने के वाद उसने पुन भूलोक मे जन्म लिया। उसका नाम उज्झित रखा गया। उज्झित ने पुन. मांसभक्षरण, जुआ खेलना, मद्य पीना आदि अधार्मिक कार्यो मे अपना जीवन विताया और अन्त मे वेश्यागमन के परिणामस्वरूप उसे राजदंड भुगतना पड़ा । उसके नाक-कान काट लिए गए; उसके समस्त शरीर मे तेल चुपड दिया गया, उसे वध्यचिह्न के रूप मे दो खंडवस्त्र तथा लाल पुष्पो की माला पहिनाई गई, उसे १ उपासकदगाग १ ६, पृ० २४ । २ विवागसुयम्, प्रथमश्रु तस्कन्ध (दु.खविपाक)
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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