SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीयं अभय ८१ (५) दंसमसयपरी सहे समरेव महामुनी | पुट्ठो य दंसमस एहिं नागो संगामसीसे वा सूरो अभिहणे परं ॥ १० ॥ न संतसे न वारेज्जा मणं पि न पओसए । उवेहे न हणे पाणे भुं जन्ते मंससोणियं ॥ ११ ॥ (६) अचेल परीसहे : परिजुण्णेहि वत्थेहि होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेलए होक्खं इइ भिक्खू न चिन्त ॥ १२ ॥ एगयाज्चेलए होइ सचेले यावि एगया । नाणी नो परिदेवए ॥ १३ ॥ एयं धम्महियं नच्चा (७) अरइपरी महे रीयन्तं अणगारं अकिंचणं । गामाणुगामं अरई अणप्पविसे तं तितिक्खे परीसहं ॥ १४ ॥ अरई पिट्ठओ किच्चा विरए आयरवििखए । धम्मारामे निरारम्भे उवसन्ते मुणी चरे ।। १५ ।। (= ) इत्थीपरीसहे संगो एस मणस्साणं जाओ लोगंमि इत्थिओ | जस्स एया परिन्नाया सुकडं तस्स सामण्णं ।। १६ ।। एवमादाय मेहावी पंकभूया उ इत्थिओ | नो ताहि विणिहन्नेज्जा चरेज्जत्तगवेसए ।। १७ ।। (e) चरियापरीस हे : एग एवं चरे लाढे अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि निगमे वा रायहाणिएं ॥ १८ ॥ 1
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy