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________________ एगतीसइमं अभयणं एगतीसइमं अज्भयणं चरणविही चरणविहिं पवक्खामि जीवस्स उ सुहावहं । जं चरिता वहू जीवा तिण्णा एगओ विरइं कुज्जा एगओ असंजमे नियति च संज २२५ संसारसागरं ।। १ ।। य पवत्तणं । य पवत्तणं ॥ २ ॥ " पावकम्मपवत्तणे । रागद्दोसे य़ दो पावे जे भिक्खू रुम्भई निच्चं से न अच्छर मण्डले ।। ३ ।। वएसु इन्दियत्थेसु समिईसु जे भिक्खू जयई निच्चं से न दण्डाणं गारवाणं च सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खु चयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ।। ४ ।। ; लेसासु छसु काएसु छक्के जे भिक्खू जयई निच्चं से न दिव्वे य जे उवसग्गे तहा तेरिच्छमाणुसे जे भिक्ख सहई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। ५ ।। विगहा कसायसन्नाणं झणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। ६ ।। किरियासु य ! अच्छइ मण्डले ।। ७ ।। आहारकारणे । अच्छइ मण्डले ॥ ८ ॥ पिण्डोग्गहपडिमा सु भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ ६ ॥ मयेसु वम्भगुत्तीसु भिक्खुधम्मंमि दसविहे | जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। १० ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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