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________________ २२२ उत्तरभयणं जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छव्विहो । सेदितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १० ॥ तत्तो य वग्गवग्गो उ पंचमो छटुओ पइण्णतवो । मणइच्छियचित्तत्थो नायव्वो होइ इत्तरिओ ॥। ११ ॥ जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया । सवियारअवियारा कार्याच पई भवे ।। १२ ।। अहवा सपरिकम्मा अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमणीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि ॥ १३ ॥ ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य ॥ १४ ॥ जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ।। १५ ।। गामे नगरे तह रायहाणि-निगमे य आगरे पल्ली । खेडे कव्वडदोणमुह- पट्टणमडम्वसंवाहे ॥ १६ ॥ आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य । थलिसेणाखन्धारे सत्ये संवट्टकोट्टे य ॥ १७ ॥ वाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पड़ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥ १८ ॥ पेडा य अपेडा गोमुत्तिपयंगवी हिया चेव । सम्बुक्का वट्टाऽऽययगन्तुं पच्चागया छट्ठा ॥ १६ ॥ दिवसस्स पोरुसीणं, चरण्हं पिउजत्तिओ भवे कालो । एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वो ॥ २० ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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