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________________ २०२ उत्तरज्झयणं सत्तावीसइमं अज्झयणं खलुंकिज्ज थेरे गणहरे गग्गे मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि समाहिं पडिसंधए ॥१॥ वहणे वहमाणस्स कन्तारं अइवत्तई। जोए वहमाणस्स संसारो अइवत्तई ।। २॥ खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई। असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई ।। ३ ।। एगं डसइ पुच्छंमि एगं विन्धइभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपट्ठिओ ।। ४ ।। एगो पडइ पासेणं निवेसइ निवज्जई। उक्कुद्दइ उप्फिडई सढे वालगवी वए ।। ५ ।। माई मुद्धेण पडइ कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं। मयलक्खेण चिट्ठई वेगेण य पहावई ।। ६ ।। छिन्नाले छिन्दइ सेल्लि दुहन्तो भंजए जुगं । से वि य सुस्सुयाइत्ता उज्जाहित्ता पलायए ।।७।। खलंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा। जोइया धम्मजाणम्मि भज्जन्ति धिइदुबला ॥ ८ ॥ इड्ढीगारविए एगे एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे ॥६॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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