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________________ पंचविसइमं अज्झयणं समयाए. . समणो होइ वम्भचेरेण वम्भणो। . नाणेण य मुणी होइ तवेणं होइ तावसो ।। ३२ ॥ कम्मुणा बम्भणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ ३३ ॥ एए पाउकरे बुद्धे जेहिं होइ सिणायओ। सव्वकम्मविनिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं ॥ ३४ ॥ एवं गुणसमाउत्ता जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तं परं अप्पाणमेव य ॥ ३५ ॥ एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे । समुदाय लयं तं तु जयघोसं महामुणिं ।। ३६ ।। तुटू य विजयघोसे इणमुदाह कयंजली। . माहणत्तं जहाभूयं सुठ्ठ मे उवदंसियं ।। ३७ ।। तुम्भे जइया जनाणं तुब्भे वेयविऊ विऊ। जोइसंगविऊ तुम्भे तुन्भे धम्माण पारगा ॥ ३८ ॥ तुम्भे समत्था उद्धत्तु परं अप्पाणमेव य। तमणुग्गहं करेहाम्हं भिक्खणं भिक्खुउत्तमा ।। ३६ ॥ न कज्जं मज्झ भिक्खण, खिप्पं निक्खमसू दिया । मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥ ४० ॥ उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ।। ४१ ।। उल्लो सुक्को य दो छुढा गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्ड जो उल्लो सोतत्थ लग्गई। ४२॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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