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________________ १८४ ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुоभूओ विहरामि अहं मुणी ! ॥। ४१ ।। उत्तरयणं पासा य इइ के बुत्ता ? केसी गोयममव्ववी । के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमव्ववी ॥ ४२ ॥ रागद्दोसादओ तिव्वा नेहपासा भयंकरा । ते छिन्दित्तु जहानायं विहरामि जहक्कमं ॥ ४३ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ४४ ॥ अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा ! | फलेइ विसभक्खीणि सा उ उद्धरिया कहं ? ॥ ४५ ॥ तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६ ॥ लया य इइ का वृत्ता ? केसी के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो गोयममव्ववी । इणसव्ववी ॥ ४७ ॥ भवतण्हा लया वृत्ता भीमा भीमफलोदया । तमुद्धरित्तु जहानायं विहरामि महामुनी ! ॥ ४८ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओइ भो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ४६ ॥ संपज्ज लिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा ! | जे हन्ति सरीरत्था कहं विज्झाविया तुमे ? ।। ५० ।। महामेहप्पसूयाओ गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिचामि सययं देहं सित्ता नो व डहन्ति मे ।। ५१ ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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