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________________ उत्तरभवणं १७६ मत्तं च गन्धहत्थिं वासुदेवस्स जेदुगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणी जहा ॥ १० ॥ अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारिओ ।। ११ ।। चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कमं । तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण गगणं फुसे ॥ १२ ॥ एयारिसीए इड्ढीए जुईए उत्तिमाए य । नियगाओ भवणाओं निज्जाओ वहिपुंगवो ॥ १३ ॥ अह सो तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुदुविखए ॥ १४ ॥ जीवियन्तं तु संपत्ते मंसट्टा भक्खियन्वए । पासेत्ता से महापन्ने सारहिं इणमब्ववी ।। १५ ।। कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो । . वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छाह ? ।। १६ ।। अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकज्जंमि भोयावेउं वहुं जणं ॥ १७ ॥ सोऊण तस्स वयणं वहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्ने साणुक्कोसे जिएहि उ ॥ १८ ॥ जइ मज्झ कारणा एए हम्मिहिंति वहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥ १६ ॥ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो । आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ।। २० ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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