SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ उत्तरज्झयणं . तियं में अन्तरिच्छं च उत्तमंगं च पीडई। इन्दासणिसमा घोरा वेयणा परमदारुणा ।। २१ ॥ उवटिया मे आयरिया, विज्जामन्ततिगिच्छगा। अवीया सत्थकुसला मन्तमूलविसारया ॥ २२ ।। ते मे तिगिच्छं कुव्वन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाहया ।। २३ ।। पिया मे सव्वसारं पि, दिज्जाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २४ ॥ माया य मे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ।। २५ ।। भायरो मे महाराय ! सगा जेटुकणिदगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ।। २६ ॥ भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्टकणिढगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ।। २७ ।। . भारिया में महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं उरं मे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्न पाणं च पहाणं च गन्धमल्लविलेवणं । मए नायमणायं वा, सा वाला नोव जई ॥ २६ ॥ खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टई। नय दुवखा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ।। ३० ।। तो हं एवमाहंस दुक्खमा हु पुणो पुणो। वेयणा अणुभविउं जे, संसारम्मि अणन्तए ।। ३१ ।। 1 .
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy