SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० उत्तरज्झयणं . लद्धण वि आरियत्तणं अहीणपंचिन्दियया हु दुल्लहा। विगलिन्दियया ह दीसई समयं गोयम ! मा पमायए ।। १७ ।। अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे ऊत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए जणे समयं गोयम ! मा पमायए ।। १८ ॥ लद्धण वि उत्तमं सुई ___सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिसेवए जण समयं गोयम ! मा पमायए ।। १६ ॥ धम्म पि हु सद्दहन्तया दुल्लहया काएण फासया । इह कामगुणेह मुच्छ्यिा समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २० ॥ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डरया हवन्ति ते । से सोयवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २१ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से चक्खुवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २२ ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy