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________________ जोगीदास (दासकवि) ने बीकानेर में 'वैद्यकसार' (मं० १७६२); समरथ ने 'रसमंजरी भाषाटीका' (सं० १७५५); दीपकचंद्र वाचक ने 'बालतंत्र भाषा वचनिका' (सं. १७६० के आसपास); चैनसुखयति ने बोपदेव की 'सतश्लोकी भाषाटीका' (सं० १८२०); मलूकचंद ने तिब्ब सहाबी' नामक यूनानी चिकित्साग्रंथ का पद्यमय भाषानुवाद 'वैद्यहुलास' (उन्नीसवीं शती), ज्ञानसार ने कामशास्त्र पर 'कामोद्दीपन ग्रंथ' (सं० १८५६); लक्ष्मीचंद्र ने 'लक्ष्मीप्रकाश' (सं० १९३७) नामक ग्रंथों की रचना की थी। पंजाब में भी मेघमुनि ने मं० १८१८ में निदानचिकित्सा विषयक 'मेघविनोद' की और गंगाराम ने सं० १८७८ में महाराजा रणजीतसिंह के काल में रोगनिदान संबंधी गंगयति निदान' नामक ग्रंथों का प्रणयन किया था। ये दोनों ही ग्रंथ प्राचीन हिंदी में दोहा, चौपाई आदि छंदों में लिखे हुए हैं। जैन विद्वानों द्वारा विरचित वैद्यक ग्रंथों के इस सर्वेक्षण से उनके एतत्संबंधी साहित्य की विपुलता का सहज ही आभास मिल जाता है । वास्तव में, इन ग्रंथों की उपयोगिता और व्यावहारिकता को ध्यान में रखते हुए इनके प्रकाशन की नितांत आवश्यकता है। इस निबंध के लेखक ने इनमें से कुछ ग्रंथों की प्रकाशनार्थ तैयार प्रतिलिपियां व टिप्पणियां भी तैयार कर ली हैं। भविष्य में उनके क्रमशः प्रकाशन का विचार है । आशा है, मेरे इस लघु विज्ञापन पर ध्यानाकर्षण करते हुए अन्य विद्वान् भी इस ओर आकृष्ट होंगे। जैन आयुर्वेद साहित्य : एक मूल्यांकन : ७५
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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