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________________ जनाचार्यों की शब्द-विज्ञान को देन साध्वी संघमित्रा भाषा भावाभिव्यक्ति का सुंदरतम् माध्यम है। भाषा वह वाहन है जिस पर आरूढ़ होकर भाव पर संवेध बनते हैं। मानव-प्रगति में भाषा वरदान रूप सिद्ध हुई है। भाषा का भव्य प्रासाद शब्दों की नींव पर खड़ा होता है। शब्दों का अस्तित्व ही भाषा का अस्तित्व है। वह शब्द क्या है ? इस प्रश्न के समाधान में व्याकरणशास्त्र का निर्माण हुआ। शब्द अचिन्त्य शक्ति के प्रकटीकरण में तंत्र और मंत्र बने। विभिन्न दर्शनों ने विभिन्न व्याख्याएं दीं। ... 'शब्दयते अनेन इति शब्दं' इस व्युत्पति के आधार पर शब्द का वह शक्त्यात्मक रूप ही प्रस्तुत निबंध का प्रतिपाद्य है, जिससे वातावरण शब्दित और ध्वनित होता है। शब्द का यह स्वरूप विज्ञान में चर्चित ध्वनि शब्द से संबंधित है। आज वैज्ञानिक जगत् ने ध्वनितत्व ने बहुत प्रभाव पैदा किया है। उसने संपूर्ण संसार में एक विचित्र हलचल पैदा कर दी है। ध्वनि के द्वारा ही आज मानव समुद्र की गहराइयों को माप सका है और विभिन्न रोगों का निदान कर सका है। ग्रामोफोन, वायलिन, प्यानो, टेपरिकार्डर ये सव ध्वनि-विज्ञान के परिणाम हैं। और भी न जाने कितने-कितने आश्चर्यजनक कार्य ध्वनि के द्वारा किए जा सकते हैं। ध्वनि के इन प्रयोगों को देखकर मानस में सहज जिज्ञासा उभरती है, वह ध्वनि क्या है ? उसके उत्पन्न और प्रसरण की प्रक्रिया क्या है ? दर्शन ने इस विषय में क्या दिया है और विज्ञान क्या दे रहा है ? जैनागम और शब्द जैन दर्शन के अनुसार शब्द पुद्गलों का ध्वनि-रूप परिणाम है। पुद्गल के दो रूप हैं--परमाणु पुद्गल और स्कन्ध पुद्गल । परमाणु पुद्गल शब्दों के जनक नहीं हैं । शब्द स्कन्ध प्रभव है। वह अनंत प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध के संघटन और विघटन से पैदा होता है। स्कन्ध्र स्वयं अशब्द है। कीचड़ से कमल पैदा होता जैनाचार्यों की शब्द-विज्ञान को देन : ३७
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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