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________________ नेताओं के एकत्र हो जाने पर भी नहीं हो सकता। एक बार मैं एक राजनैतिक नेता का भाषण सुन रहा था। वह देश की समृद्धि तथा स्थिरता के बारे में कह रहा था। राजनैतिक नेता हमें राजनैतिक आजादी दे सकते हैं, कुछ टेक्निकल और टेक्नॉलोजिकल प्रगति करवा सकते हैं तथा कुछेक को धनी बना सकते हैं, किन्तु जहां तक नैतिक तथा आचार आदि मूल्यों का प्रश्न है वे कभी भी हमारे आदर्श नहीं बन सकते। ___ जहां तक जैनों के भारतीय संस्कृति के अवदान का प्रश्न है, अनेक ऐसे पक्ष हैं जिनसे इस विषय पर प्रकाश डाला जा सकता है। इस अल्पसंख्यक जैन-समाज ने पर्याप्त रूप से इस दिशा में उदारता का परिचय दिया है। दक्षिण भारत के मदुराई के आसपास सित्तलनिवसल (सिद्धानां वासः) तथा अन्य स्थानों पर प्राचीन गुफा-मंदिर विद्यमान हैं। इनमें ब्राह्मी शिलालेख हैं। ये गुफाएं जैन साधुओं के हित के लिए धनी वर्ग द्वारा बनवाई गई हैं। इनमें से कुछ में सूक्ष्म चित्रावली भी है जो कुछ-कुछ अजन्ता की गुफाओं की तरह है। इसके अलावा समस्त भारत में जैन मंदिर हैं। इनमें कला की दृष्टि से अपनी-अपनी विशेषताएं हैं । दक्षिण में जैनों के बहुत से मंदिर हैं जिनमें से कुछ तो अभी भी पूजित होते हैं और कुछ पूर्णतः उपेक्षित हैं । जहां तक जैनों का प्रश्न है, उनके सामाजिक समुदाय को चार स्तम्भों ने आधार प्रदान किया है। पहला स्तम्भ मंदिर है, दूसरा स्तम्भ मुनि है, तीसरा मंघ के प्रति आस्था और चौथा शास्त्र । ये चारों सदा ही उनके आधार रहे हैं और उनके प्रत्येक धार्मिक कार्य को इन्होंने सुदृढ़ किया है। अपरंच, मंदिरनिर्माण तथा मूर्तिपूजा ने स्थापत्यकला को प्रोत्साहित किया है और इस प्रकार अल्पसंख्यक होते हुए भी जैनों ने इस दिशा में महान् योगदान दिया है। श्रवण बेलगोला, करकल, मूडविद्री, हले विद आदि में विद्यमान जैन-मंदिर जैनों की स्थापत्य-कला में रुचि के गवाह हैं। राजस्थान में आबू तथा राणकपुर के मंदिर किसी भी देश के लिए गर्व की बात हैं, क्योंकि इन्होंने हमारे स्थापत्य-कला विषयक गौरव को ऊंचा उठाया है। ये हमारी सच्ची निधि हैं। इनसे हमें प्रेरणा मिलती है। इनकी कीमत हमें करनी चाहिए। इस प्रकार मंदिरों, मूर्तियों, चित्रों आदि का निर्माण करके जैन भारत की सांस्कृतिक परंपरा की श्रीवृद्धि करने में पीछे नहीं रहे हैं। साहित्य-सर्जना के क्षेत्र में भी जैनों का कार्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है। संख्या की दृष्टि से इनकी साहित्य-संपदा इतनी अधिक है कि यह समझना पड़ेगा कि इतना सब कैसे संभव हो सका । जैन साधु अपने आप में एक संस्था है। उसकी आवश्यकताएं अत्यल्प होती हैं। वह दो समय भी भोजन नहीं करता। जीवित रहने तथा आध्यात्मिक लाभ एवं धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए वह मात्र भारतीय परम्परा को जैन विद्या का अवदान : २६
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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