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________________ ( ३२ ) कट की और खारवेल ने अपने को 'चैदिवंशज लिखा ही है। अतः साहसी वीर ऐलेय के वंशधर सम्राट् ऐल खारवेल थे, यह स्पष्ट है। विन्ध्याचल के सन्निकट कौशला चेदिराष्ट्रकी राजधानी थी। वहीं से खाखेल के पूर्वज उस राज्य का सासन करते थे. किन्तु उनमें से क्षेमराज ने अन्तिम नन्दराज का हराकर कलिङ्ग पर अपना अधिकार जमा लिया और कुमारी पर्वत के निकट अपनी राजधानी बनाकर वह राज्य करने लगे। खाखेल रहीं के उत्तराधिकारी थे। वह कलिङ्ग के राजा थे और बाल्यकाल से ही साहस और विक्रम में अद्वितीय थे। राजनीति और धर्मशान में भी वह अनूठे थे। पञ्चीस वर्ष की नौजवानी में वह राजा हुये । अव उन्हें अपने पौरुप को प्रकट करने का चाव लगा। उन्होने भारत दिग्विजय की ठानली और निश्चय कर लिया कि मगध सम्राट को परारत करके उनसे अपने पूर्वजो का बदला चुकालें । चात यह थी, मगधराज ने पहले कलिग से उनके पूर्वजों को मार भगाया और कलिङ्ग की प्रसिद्ध जिन मूर्ति वह ले गया था। तब मगध में शुगवंशी राजाओं का अधिकार था। मगध के अपने पहले आक्रमण में खाखेल असफल रहे। वह रास्ते से ही वापस लौट आये और दूसरे आक्रमण की तैयारी में लग गये ! किन्तु मगध पर प्राकमण करने के पहले उन्होंने भूषिक, राष्ट्रीय क्षत्रियों और दक्षिणेश्वर शातकर्णि को युद्ध में परास्त
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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