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________________ ( ३१ ) (८) सम्राट् ऐल खारवेल। इतिहास से बहुत पहले की बात है। तव तक ब्राह्मणवर्ग 'ने पार्षवेदो को कलङ्कित नहीं किया था। वेदों के अनुसार यशों के मिस से हिंसा नहीं की जाती थी। तय कौशल में हरिवंश का राजा दक्ष राज्य करता था। इला उसकी रानी थी। ऐलेय पुत्र और मनोहरी कन्या थी । दक्ष मनोहरी के रूप पर पागल हो गया। उसने उसे अपनी पत्नी बना लिया। गनी इला इस पर कुढ़ गई। उसने ऐलेय को पहका लिया और वे माता-पुत्र विदेश को चल दिये। घे दुर्गदेश में पहुंचे और वहाँ इलावर्द्धन नामक नगर घसा कर बस गये। इसके वाद ऐलेय अगदेश में ताम्रलिप्त नामक नगरी की नींव जमाने में सफल हुए । फिर वह एक सच्चे जैनवीर के समान दिग्विजय को निकले । इस दिग्विजय में उन्होंने नर्मदा तट पर माहिष्मती नगरी की स्थापना की। उपरान्त अपने पुत्र कुणिम को राज्य दे कर मुनि हो गये। श्रव भला बताइये ऐसे साहसी और पराक्रमी पूर्वज को ऐलेय के वंशज कैसे भूलते १ उन्होंने अप नाम के साथ प्रयुक्त होने वाले विरुदों में 'पेल' विरद को रक्खा। सम्राट् खारवेल के नाम के साथ 'ऐल' विरद का होना, उन्हें हरिवंशी प्रकट करने के लिए पर्याप्त है । तिस पर ऐल के शधरों ने ही चेदिराष्ट्र की स्थापना विन्ध्याचल के सन्नि
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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