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________________ तथापि देश में सेवा कार्य और शिल्प की उन्नति के लिए जिन्हें दक्ष पाया उन्हें 'सेवक वर्ग में नियुक्त किया और उनको 'शूद्र' नाम से पुकारा । इस तरह प्रारम्भ में इस त्रिवर्ग से ही राष्ट्रीय कार्य चल निकला । राजाज्ञा के बिना कोई वर्गभेद का उल्लकन नहीं कर सकता था। हाँ, यदि कोई वैश्य क्षत्रियत्व के उपयुक्त पाया जाता, तो उसे सैनिकवर्ग में पहुँचने की पूर्ण स्वाधीनता थी। बस इस प्रकार देश में राष्ट्रीय नागरिकता को जन्म दे कर ऋषभदेव जी सुचारु रूप से शासन करने लगे। किन्तु इस समय तक लोगों को अपने इहलोक सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति से ही छुट्टी नहीं मिली थी; इसलिये उन्हें परलोक विषयक वातों की ओर ध्यान देने का अवसर ही नहीं मिला था और इसका कारण 'ब्राह्मण वर्ग' अभी अस्तित्व • में नहीं आया था। उसका जन्म तो भरत महाराज ने तव किया जव भगवान ऋषभदेव सर्वश तीर्थङ्कर हो गये। __उपरान्त जब ऋषभदेव जी ने राष्ट्र की समुचित राजव्यवस्था कर दी और लोगों को सभ्य एवं कर्मण्य जीवन विताना लिखा दिया; तथापि स्वयं वे गृहस्थ रूप में सफल हो चुके, तब उन्हें परलोक की सुधि पाई । विवेक उनके सम्मुख मूर्तिमान हो, श्रा खड़ा हुआ। इस बड़ी उम्र में अब उन्हें आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की सुधि आई। उन्होंने मन्त्रिमण्डल को एकत्र किया। सव की सम्मति से ऋषभदेव जी के पुत्र भरत जी का राजतिलक कर दिया गया। आर्यावर्त के वही
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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