SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद्भागवत पुराण में उनका चन्धि बड़े अच्छे ढग पर लिखा है और वह जैनवर्णन से सादृश्य रसता है। वहाँ भी उन नाभिराय और मरुदेवी का पुत्र लिखा है और कहा है कि यह आठवें अवतार थे। 'भागवतकार' यह भी कहते हैं कि 'सर्वत्र समता, उपशम, वैराग्य, ऐश्वर्य और महेश्वर्य के साथ उनका प्रभाव दिन-दिन बढ़ने लगा। वह स्वय तेज, प्रभाव, शक्ति, उत्साह, कान्ति और यश प्रभृति गुण से सर्व प्रधान यन गये। (पाट) ऋषभदेव जी जय सर्व प्रधान बन गये तो उन्होंने लोगों को रहन-सहन और करने-धरने के नियम बतलाने और वह सानन्द जीवन यापन करने लगे। जगली जानवरों और श्रातताइयों के विरोध में अपनी रक्षा करने के लिए उन्होंने लोगों को हथियार यनाना सिखाया और स्वयं हाथ में तलवार लेकर उन्होंने लोगों को उसके हाथ निकालना सिखाये । यही पयों ? कपड़ा युनना, वर्नन बनाना इत्यादि शिल्पकर्म और लिखनापदना, चित्र निकालना आदि विद्याओं का शान भी उन्होंने पहले पहल लोगों को फगया। राष्ट्रीय व्यवस्था और शिल्पकला तथा व्यापार की उन्नति के लिए उन्होंने वर्गभेद नियत किये । जिन्हें उन्होंने देश की रक्षा के लिए यलवान पाया उन्हें सैनिक वर्ग में नियत करके 'क्षत्री' नाम से प्रसिद्ध किया और जो मसि, सपि एवं पाणिज्य कार्यों में निपुण थे, वह 'आर्थिक वर्ग' में रखवे गये और वैश्य' नाम से उल्लिखित किये गये।
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy