SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( = ) वार का ज़ोर और बहुत द्रव्य है तब तक एक जैनी भी, श्राई हुई किसी प्रकार की बाधा को न तो देख ही सकता है और न सुन ही सकता है !' यही बात 'लादी संहिता' नामक ग्रन्थ में और भी स्पष्ट रूप से दुहराई गई है । श्रव भला बतलाइये, जैनियों का क्षत्रित्व से भटका हुआ कैसे कहा जाय ? इसको देख कर भी, यदि कोई जैनों की वीरता पर आश्चर्य करे तो यह उसकी अज्ञानता का अभिनय मात्र होगा । प्रायः होता भी यही है । उस रोज़ 'क्वार्टर्ली जर्नल ऑॉव दी मीधिक सोसायटी' ( भा०१६ पृष्ठ २५) में एक अंग्रेज़ विद्वान् ने जैनवीर वैचप्पा का वीरगल् सम्पादित किया और जव उसमें उन्होंने पढ़ा कि 'युद्धमें वीर गति को प्राप्त करके बैचप्प ने स्वर्गधाम और जिन भगवान के चरणों की निकटता प्राप्त की तो उनका श्रचरज चमक गया । उन्होंने चट लिख मारा 'An extraordinary 1ewaid indeed for a Jaina who 18 said to have sent many of the Konkanigas to desti action " किंतु अब बेचारे का दोष ही क्या ? उन्हें जैन शास्त्र ही नहीं मिले जो उन्हें जैन श्रहिंसा का वास्तविक स्वरूप समझा देते । ख़ैर, सवेरे का भूला हुआ शाम को ठिकाने लग जाय तो वह भूला नहीं कहलाता । लोग अब भी अपनी ग़लती को ठीक करलें तो देश और जाति का कल्याण हो । जैनधर्म पर मढ़ा गया झूठा कलङ्क पल भर में काफूर हो जावे । इसी भाव को लक्ष्य करके, आइये पाठक गए, इस युगकालीन जैन-वीरों 1
SR No.010326
Book TitleJain Veero ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1931
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy