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________________ (६३) धर्मसंग्रह श्रावकाचार-आचारका प्रथ है इसे अवश्य देखना चाहिये । मूल्य २) पद्मनन्द पच्चीसी यह बड़ा सुन्दर प्रथ है । मूल्य चार रुपया । स्याद्वादमजरी--इस प्रथमे स्याद्वादविषयके ऊपर बहुत विवेचना की है । हिन्दी भाषा टीका सहित छपकर तयार है । न्योछावर ४) भाषा पूजा-इसमे सव पूजा तथा विसर्जन शांति पाठ आदि जो कुछ है सव भाषाहीमें है ।न्यो०४ पंच भंगल--नया छपफर तयार हुआ है। विद्यार्धियोके बड़े कामकी चीज है । मूल्य तीन आने। महेन्द्र कुमार नाटक- के सपादक माननीय पं. अर्जुनलालजी सेठी घी, ए हैं आजतक जनसमाजमें ऐसा सुन्दर नाटक तयार नहीं हुआ था। नमाज सेठीजीके उच्च विचारोंसे तथा उनकी कार्यप्रणाली और नि स्वार्थ जाति सेवासे भलीभांति परिचित है । इसे मगाकर पढ़ना चाहिये और खेलना भी चाहिये । मूल्य आठ आना। प्रद्यनचरित्र भाषा वचनिका- इस प्रयमे श्रीकृष्ण नारायणके पुत्र प्रद्युम्नकुमारकी कथा यहुतही भावपूर्ण लिखी गई है । एकवार पढना शुरू कर दीजिये छोड़नेको जी नहीं चाहेगा । मूल्म Rin) नित्यनियम पूजा-(संस्कृत तथा भापा)-तीसरीवार शुद्धता पूर्ण छपी है मूल्य चार आना। तत्त्वार्थ सूत्रकी वालबोधनी टीका-यह जैनियोंका प्रिय प्रय है। छपाई बहुतही उत्तम है । मूल्य II पारा आना । जैनपद संग्रह-१ ला भाग ( दौलतरामजी कृत) छह आना। जैनपद संग्रह-२ रा भाग ( कविवर भागचंद्र कृत) मूल्य चार आना। जैनपद संग्रह-५ वा भाग ( कविवर वुधजनजी कृत ) छह आना। सागरधर्मामृत-पंडित आशाधरजी कृत का प० लालारामजीने हिन्दी अनुवाद किया है । श्रावकाचार सम्बन्धी सर्व चातें भरी हुई हैं। मूल्य १॥
SR No.010325
Book TitleJain Tirth Yatra Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Shivlal
PublisherDahyabhai Shivlal
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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