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________________ (५०) मिलते हैं जो कि नये बने हैं। यहां से १ मील आगे चलगिरी पर्वत है रास्तेमे २० हाथ ऊंची इन्द्रनीत और कुंभकरणकी प्रतिमा हैं। ऊपर पहाड़ पर भी १ धर्मशाला है। सिद्धवरकूट-यह स्थान चारों तरफ पहाड़ियोंसे घिरा हुआ रेवा नदीके तट पर स्थित है। यहां १ मंदिर हैं। धर्मशालामी है। यहां पर हर वर्ष मेला भरता है । इस पर्वतसे साडेतीन करोड़ मुनि और दो चक्री तथा १० कामदेव मोक्ष गये हैं। नासिक-टेशनसे शहर ५ मील है । यह शहर गोदावरीके किनारे पर है। वर्तन अच्छे बनते हैं। पूना-यहांपर दो मन्दिरजी दि. आम्नायके है और ठहरनेके लिये स्टेशनके पास धर्मशाला है। यहांपर चित्रशालाप्रेस देखने योग्य है। बम्बई-जी. आई. पी. रेलवे से आनेवाले यात्रियोंको बोरीचंदर और बी. बी. एन्ड सी. आई. से आने वालोंको ग्रान्टरोड स्टेशन पर उतरना चाहिये यहांले ।) आनामें घोड़ा गाड़ी भाड़े करके हीरावाग धर्मशालामें आना चाहिये। __ मंदिर ५ हैं । समुद्रके किनारे स्व० सेठ माणिकचंदनांके मंदिरमें स्फटिकमणिकी प्रतिमा तथा सारा चैत्यालय चारों ओर कांचसे जड़ाया गया है। देखने वालोंको कई समोसरण दीखते हैं । यहां विक्टोरिया गार्डन, हेगिंन गार्डन, जनरल पोष्ट आफिस, अपोलो वंदर रेसमकी मिल, टौन हाल, कुलाबा, आदि देखने योग्य स्थान है ।
SR No.010325
Book TitleJain Tirth Yatra Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Shivlal
PublisherDahyabhai Shivlal
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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