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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [४८ है । ७०२० सीढ़िया लगो हुई हैं। ये सीढ़ियां गिरनारके नामसे सब देशोंसे रुपया इकट्ठा करके बनवाई गई हैं । रास्तेमें वैष्णव साधुओंके बहुत आश्रम हैं । देव - देवी- गाय-भैंस आदि देखने जाना चाहिये। किमी२ आश्रममें चना और पानीको दानशाला है किसी भाईको जरूरत हो तो ले लेना चाहिये । (७८) गिरनार पहाडका वणन । २ मील ऊपर जाने पर सोन्टका महल मिलता है, यहां सामानकी के दुकान है । और बहुत श्वेताम्बर मंदिर हैं । यहांके बड़े मंदिरमें श्रीनेमिनाथकी श्याम मूर्ति है । और आगे बड़े२ मंदिर तथा श्वनाम्बरी प्रतिमा व तालाव है । यहांमे रास्ते में जाते समय पहाडके उपर श्वेताम्बर और बैंगवोंके मंदिर बहुत हैं । यहां सोरठका महल धर्मशाला है । यात्रियोंकी इच्छा हो तो देखले । नहीं तो आगे चला जावे । थोड़ी दूर जानेपर दक्षिणकी तरफ राजुलकी गुफा है। भीतर जाने-आने समय बटकर घुमना चाहिये । ये छोटोमी गुफा है । वहां पर उजेला करनेसे १ मूर्ति सती राजुलदेवीकी है । मो वहां का दर्शन करके उसी जगहसे ऊपरके दिगम्बर जैन मंदिरमें जावे । यहां एक कोटमें २ जिन मंदिर बहुत मनोज्ञ हैं । निममें प्रतिमा पद्मासन खड़गासन दोनों विराजमान हैं । एक गुम्मट में बड़ी खड्गासन प्रतिमानी अलग बिरानमान है यहां पुनारी रहता है । बुलाकर भगवान का दर्शनपूजन करे । फिर आगे चला जाय । श्री गिरनारजीके बाबत दिगम्बर श्वेताम्बरोंका झगड़ा चलता था जिसमें तन मन धनसे पूर्ण सहायता करके धर्मात्मा दानी सन्जन धनाढ्य एक हूमड़ ज्ञाति वंडी लाला कस्तूरचंदमीने इस
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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