SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक । [. (७४) बैट द्वारका। बराबर यह स्थान समुद्र के मध्य टापू पर है । यह ग्राम ठीक है। १ मीठा पानीका कुआ है, बहुत धर्मशाला हैं, हजारों वैष्णव यात्री आते हैं, यहां जैनीकी कोई भी चीन नहीं है। यहां १ बड़ा मंदिर है, चारों तरफ कोट है, बाजार नजदीक है । मं देरमें प्रसाद बहुत चढता है, सो बानारमें बिकता है . मंदिरके दरवाके पर कोट बहुत बटिया मनबृत है। यहां पर प्रत्येक आदमीसे १) लेकर पीछे दर्शन करने देते हैं, विना रुपया लिये दर्शन नहीं करने देते हैं। यहां कृष्ण महारानकी मूर्ति बहुत बढ़िया है । दिनमें समयसे ५-६ वार दर्शन कराते हैं। ग्राममें और भी मंदिर हैं । मगर बड़ा मंदिर वही द्वारकानाथका है । हरएक और साधु. ओंको हाथ, भूना, पेटके उपर छाप लगाते हैं। उसका भी टिकिट लगता है ! यह यात्रियोंकी इच्छापर निर्भर है, नबरदस्ती नहीं की नाती है। वहासे लौटकर रेल या नावके राम्नेसे नामनगर फिर राजकोट आवे । (७. ) जेतलसर । यह जनागटके बीच में जंकशन है। यहांसे एक गाड़ी पौरबंदर जाती है, उसका हाल ऊपर लिख दिया है । बीचमें फिर धौला स्टेशन गाड़ी बदलनी पड़ती है। फिर सीहोरोड़ नाती है। मति योंको लौटकर अगर पालीताना जाना वापर गा . भावे । पालीतानासे जूनागढ़ जानेवालोंको धौला, जेतलसर गाड़ा बदलना चाहिये।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy