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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक । [ ३९ 1 जावे । बीचमै बड़नगर वीसनगर पड़ता है। किसीको उतरना हो तो उतर पड़े, दोनों ही शहर अच्छे हैं । श्वेताम्बरोंके घर व मंदिर हैं. दि०जैन कुछ भी नहीं हैं, आगेके ग्रामों में दि०जैन व मंदिर भी हैं। (६८) तारंगा हिल । स्टेशन के पाम दि० जैन धर्मशाला में ठहरे। यहांसे ।) आना सवारी में बैलगाड़ीसे ३ मील पहाड़की तलेटीमें जावे । फिर वहांसे मजूर करके सामान पहाड़की धर्मशाला में लेजावे । गाड़ीके रास्ते से धर्मशाला एक मील है, डोलीकी जरूरत हो तो कर लेवें । ( ३९ ) श्री सिद्धक्षेत्र तारंगा । कहते हैं । 1 इसका दूसरा नाम तारंगावन मुनीहुंटकोड भी पहिले एक बड़ा दरवाजा आता है । फिर कुछ दूर बाद कुण्ड और दिगम्बर श्वेतांबर दोनोंकी धर्मशाला आती है। सो दिगम्बर धर्मशाला में उतरे । फिर धर्मशाला के १३ मन्दिरोंका दर्शन करे । यह स्थान परम पवित्र और रमणीक है, मन्दिर और प्रतिमा प्राचीन है । यहांकी पूजा वंदना करके श्वे० मन्दिर जरूर देवे | फिर पहाड़की वन्दनाको जावे । पहिले ये सब मन्दिर तथा प्रतिमाएँ, दिग म्बरी थीं, पर अब श्वेतांबरी करली गई हैं । अजितनाथकी प्रतिमा I बहुत बड़ी श्वेतवर्णकी है, फिर सामने छोटे मन्दिर में नन्दीश्वर द्वीप ५२ चैत्यालय, सहस्रकूट चैत्यालय, १ सहस्र चरण, १ चतुर्मुखी चौवीसी, १ चतुर्मुम्वी प्रतिमा आदि बहुत रचना है। दोनों तरफ उत्तर-दक्षिण में दो पहाड़ हैं। दोनों पहाड़ोंक बीचमे एकर गुफा जाती हैं। पहाड़की चढ़ाई एक मील है, पहाड़के ऊपर २ देहरिया (गुमठी) प्रतिमा चरणपादुका है। सो भावपूर्वक दर्शन
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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