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________________ ३६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । है। यहांमे मुनीमनीकी मार्फत पैदल, बैलगाड़ी, मोटर अथवा जेमी निमकी शक्ति हो उम माफिकसे पहाड़पर नावे । पगसे १८ मील पक्की मड़क लगी है । रात-दिन चल सकते हैं, कोई डर नहीं है। प्रत्येक सवारीका जाने-आनेका २॥) लगता है। बैलगाड़ी रातभर चलकर ८ बजे मुबह पहुंचा देती है, और लेकर भी आती है । मोटरका आने जानेका किराया ३||i) लगता है। टिकटमें ८ दिनको म्याद रहती है, मिर्फ आनेका या जाने का ही लेनेसे ५) पड़ता है। आने जानेका मागिल लेनेसे ४ दिनकी म्याद लेकर काम करें। विशेष हाल मुनीमसे पूछकर यात्री अपने सुभीतासे काम करें। यात्रियोंको पूजन तथा खानेका सामान लेकर पहाड़ उपर जाना चाहिये । (६३) अनिशयक्षेत्र आवनी। नलेटीसे २० मोलपर धर्मशाला है. निममें उतरे । एक प्राचीन मंदिर और प्राचीन प्रतिमा हैं । मूलनायक गंभवनाथनी हैं, एक मंदिर दि०-ट्वे० का मिला हुआ है, मब पूजनादि करें । बाद यात्रियों की इच्छा हो तो श्वेतांबर मंदिर देखें, नहीं तो फिर अचलगढको जावें । अगर इच्छा न हो तो तलेटी लौटकर भाजावें । टिकिट १॥) देकर महेशानाका ले लेवे । ___ (६४) आबूका श्वताम्बर मंदिर । वहांपर एक भारी धर्मशाला है, जिसमें बहुतसे मंदिर हैं। विलोरी पत्थर खुदाई काम खुब किया गया है, ये मंदिर प्रसिर है, इसकी बनाई १८ करोड़ रुपया है, जिसमें एक मन्दिर सासु ननद, एक देवरानी जेठानीका है और बड़ा मन्दिर ५१ देहरिया
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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