SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [३५ दि. नैन घर बहुत हैं। लौटकर फलोदी फिर जोधपुरका रेलभाड़ा 1||-) लगता है। (५१.) जोधपुर। स्टेशनके पाम १ दि जैन धर्मशाला और मंदिर है । सरकारी धर्मशाला भी ननदीक है। बाजार नजदीक है । खारे पानीका कुआ है, शहर अच्छा है । कोटका दरवाजा, बाजार, घण्टाघर, कचहरी, राजमहल, तालाव, रानाकी छत्री ये सब ३ मील दूरीपर हैं । यहांका अनार (दाडिम) प्रसिद्ध है । (६०) पादत्री। शहर बढ़िया है, श्वेतांबर पर धर्म मंदिर बढ़िया है, यहींको सूघनेकी तमाग्वृ देशों में प्रमिड है, आगे मारवाइरोड़ माडी बदल कर आब्रगेड़ नावे और इधर होकर व्यावरसे अनमेर नगरे । (६१) च्यावर ( नयानगर )। म्टेशनसे ? मोलपर मेट चम्पालाल नी राणीवालीको धर्मः।लामें ठहरनेसे पानी आदिका सुभीता होता है। महाविद्यालय, बंगला, कुआ, मंदिर आदि देखनेका आराम है । यह बड़ा भारी शहर है । यहांपर बंबई जैसा व्यापार होता है । २ मंदिर शहरमें व २ न'शेयानीमें हैं और जैनियों के घर बहुत हैं। यहांसे आगे मनमेर शहर आता है। (६२) आबूरोड़। स्टेशनसे धर्मशाला थोड़ी दूर है, वहींपर ठहरे। यहां एक मंदिर है। नदी, कुमा, तालाब ननदी है, १० दिन अग्रवागेघा है, सामान सब शुद्ध मिला है, पात्र हवा यहां की अच्छी
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy