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________________ ३० ] जैन तीर्थयात्रादर्शक | कहींका टिकट ले लेना चाहिये। अगर किसी भाई को रास्तामें उतरना हो तो उतर पड़े। घर जाना हो तो नीचेका हाल देखकर चला जाय । बीचमें मकराना पड़ता है । पत्थर बहुत अच्छा होता है । सब देशों में जाता है। रास्ते में देरका ढेर पड़ता है सो देखने जाना चाहिये । (४५) सांभर | स्टेशन से ग्राम १ मील दूर है । २ दि० जैन मंदिर और बहुत घर मैनियोंके हैं। यहांके पहाड़ से नमक बहुत निकलता है। और दिशावरोंको भेजा जाता है। इस नमकसे १ करोड़की आमदनी अंग्रेजोंको है ! (४६) नांवा ( कुचामन रोड़ ) नांवा स्टेशन से २ मील दूर है । यहांपर ४ दि० जैन मंदिर और बहुत घर दि० जैनियोंके हैं। स्टेशन से हरएक वक्त मोटर, उंट, बैलगाड़ी की सवारी मिलती हैं। यहांसे कुचामन २० मील दूर है । ( ४७ ) कुचामन शहर । यह शहर मारवाड़ में श्रेष्ठ है । यहांपर बड़े २ चार दि० जैन मंदिर हैं । प्रतिमा बहुत हैं । जैनियोंके भी बहुत घर हैं । बड़े २ मकान विशाल और कीमती हैं। कलकत्ता निवासी सेठ चैनसुख गम्भीरमलजी यहींपर रहते हैं । इन्हींकी पाठशाला, कन्याशाला व औषषालय हैं । भाई सेठ मदनचन्द्र प्रभुदयात्री श्री यहीं पर रहते हैं। (४८) जसवंतगढ़ | महांसे एक गाड़ी सुजानगढ़ और एक लाडनूंंको जाती है।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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