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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२१ मूर्तिको लेजाकर उम ग्बालेके घरमें रख दी। और ग्वाला नित्यप्रति दूधका प्रछाल करदेता था। सब लोग दर्शन करने लगे। इस मूर्तिके होनेसे यह ग्राम उन्नत होगया । लोगोंको अनेक चनकार होने लगे। फिर कुछ दिन बाद यह बात नजदीकके शहर और ग्रामों में पहुंच गयो । बादको आगरा, जयपुरादि शहरों में पहुंची। सब लोगों ने पाकर पूजन किया और आनंद मनाया । उन लोगोंने जयपुरादि शहरों में ले जाने का बहुत उपाय किया । कई गाड़ियां भी टूटी, मगर प्रतिमा न गई। फिर मब उस प्रतिमाको नदांसे निकाली थी वहींपर विरानमान कर दी। वहां पर १ छत्रि १ चरणपादुका बिगनमान है। फि. श्रावक लोग एक आदमीको पूजन प्रच्छालके लिये छोड़कर चले गये । फि. महावीम्बानीकी जयध्वनि मना देशोंमें फैलने लगी। बहन लोग आने जाने लने । जयपुरमें एक वाजुगय नाम का कोई जागीरदार दिग कामदार था। उममे रानाका कुछ अपराध बन गया था । निमने रानाने उसका घर लुटवा लिया और उसको कैद कर लिया। इस काटमें वानराय उसी महावीरस्वामीकी प्रतिमाका ध्यान करता रहा। हृदयसे अपना दु ग्ब सुनाता और भगवानकी स्तुति करना था। जिसके प्रभावसे रानाकी बुद्धि फिर गई, फिर राजा खुद चाजूरायके पास गया और उसको बंधनमुक्त करके छोड दिया । और प्रसन्न होकर ५००) सालकी जागीर लगादी । नक बाजूरायने माकर बड़ा भारी मंदिर बनवाया और उसके खर्चके लिये एक ग्राम लगा दिया। फिर उस मूर्तिको मंदिरमे बिराजमान करदी, और जीवनपर्यंत उनकी भक्तिपूजा करता रहा।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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