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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक । (२७) श्री चमत्कारजी अतिशयक्षेत्र-आलीनपुर । यह शहर प्राचीनकालमें बहुत बड़ा था, सो टूटकर सवाईमाधोपुर वसा है। यहांपर मकानोंके खंडहर बहुत हैं। एक बड़े कोटसे घिरा हुआ है । दि. जैन धर्मशाला व कृप है। बड़ा मारी मेला भी भरता है । मंदिर भी यहांका भदभुन रमणीक है। मंदिरमें दो वेदी और प्रतिमा बहुत हैं । एक प्रतिमा श्री मादिनाथ चमत्कारनीकी म्फटिकमणिकी बहुत कीमती मनोज्ञ विराजमान है । यहांपर यात्री बहुत आने हैं । मानता, पूना, भेंट चढ़ाते हैं। यहांसे मवाईमाधोपुर शहर ननदीक हैं। वहांपर भी मंदिर प्रतिमा बहुत रमणीक है । दि० जनों के बहुत घर हैं। सबका दर्शन करके फिर लौटकर म्टेशनपर आवे । यहांसे एक गाड़ी जयपुर जाकर मिलती है । एक आगे मथुग देहली तक जाती है । एक अयोध्यानी, नागदा, रतलाम तरफ जाती हैं । अब यहांसे आगेका टिकट ?॥१) देकर पटन्दा ( महावीर रोड़) का लेलेना चाहिये । अगर किमी भाई को जयपुरकी तरफ जाना हो तो टिकटका २) देकर जयपुर जाना चाहिये । बीचमें नवाई स्टेशनसे टोंक जाना होता है। आगे सांगानेरको यात्रा बीचमें पड़ती है। इसका उल्लेख आगे कर देता हूं फिर पटुन्दाका करूंगा। (२८) नवाई (टोंक) यहांपर.४ मीलकी दूरी पर एक बड़ा गढ़ है। भीतर शहर है। नवाब सा का राज्य है । राजदरबार तथा और भी चीजें देखनेकी हैं । शहर बहुत प्राचीन है । जैन मंदिर भी बढ़िया २ है, मैन लोगोंकी वस्ती बहुत है।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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