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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | ww ११ ] तीर्थकर शीतलनाथकी जन्म नगरी भी कहते हैं । पहिले वह बड़ा नगर था | यहांके जंगलमें रामा अशोक के समय के बीस २ कोशके चक्र में बहुत ऊंचे २ मंदिर २० फुटसे लेकर १० फुट तक हैं । यह ग्राम बहुत ही रमणीक है, यहांपर दि० जैन घर बहुत हैं । एक जैन पाठशाला भी है। प्राचीनकालके २ मंदिर हैं, जिनमें प्रतिमाएं बहुत ही मनोज्ञ हैं, यहांका दर्शन करके फिर उज्जैन लौट आना चाहिये । फिर यहांमे रेल किराया ||1) देकर मक्सी पार्श्व1 नाथ जाना चाहिये | (१६) मक्सी पार्श्वनाथ अनि क्षेत्र । भोपाल से आते समय या उज्जैनसे जाते समय मक्सीनीका स्टेशन पड़ता है। स्टेशन पर हरवक्त नौकर रहता है। यात्रियोंको ऐसा कहना चाहिये कि " हम दिगम्बर जैन हैं " उसके साथ मा किमीसे पूछकर १ फलांगपर दि०जैन धर्मशाला में ठहरना चाहिये । फिर यहांसे २ मीलकी दूरीपर मक्सी पार्श्वनाथ है । वहांकी यात्रा करना चाहिये । मक्सीनीकी महिमा तीनों लोक में प्रसिद्ध है । अनेकों बादशाहों और महानुभावको अनेक अतिशय प्रगट हुए थे। यह पार्श्वनाथ की मूर्ति साक्षात मनको शान्त करके पापको नाश करती है । मन दर्शनोंसे प्रफुल्लित होजाता है, परम्परया मोक्षको भी देनेवाली है । बहुत प्राचीन और सुन्दर है । यहांपर एक बड़ी धर्मशाला, तालाब, बावडी, बगीचा आदि वस्तुएं दर्शनीय हैं । खानेपीने का सामान भी अच्छा मिलता है, यहांसे जाना हो तो भोपाल जावे । मक्सीभीकी मात्रा करके फिर १||) देकर टिकट कर भोपाल जाये। AAV
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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